

नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रापिकसबस्टेंस (एनडीपीएस) एक्ट के अंतर्गत तीन साल या उससे कम सजा मिलने पर ट्रायल कोर्ट द्वारा सजा को निलंबित कर आरोपित को जमानत पर रिहा किया जा सकता है या नहीं इस अहम कानूनी प्रश्न को अब पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट की बड़ी बेंच तय करेगी।
हाई कोर्ट के जस्टिस संजय वशिष्ठ ने यह संदर्भ उस समय उठाया जब उनके समक्ष एनडीपीएस अधिनियम के तहत दो दोषियों की अपील आई, जिन्हें विशेष अदालत ने दो साल की कठोर कारावास की सजा सुनाई थी। अपील लंबित होने के बावजूद ट्रायल कोर्ट ने उन्हें सजा निलंबित कर जमानत नहीं दी थी, जिसे लेकर सवाल खड़ा हुआ।
जस्टिस वशिष्ठ ने कहा कि यह मुद्दा विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि जहां ट्रायल कोर्ट को यह अधिकार प्राप्त है कि वह तीन साल या उससे कम की सजा के मामलों में दोषी को जमानत पर रिहा कर सकता है, वहीं इन दोनों अभियुक्तों को यह राहत नहीं दी गई। इस मुद्दे पर विचार करते हुए कोर्ट ने कहा कि क्या एनडीपीएस अधिनियम की धारा 32 ए ट्रायल कोर्ट के इस अधिकार को सीमित करती है, या क्या हाल ही में लागू हुई भारत न्याय संहिता की धारा 430(3) के तहत यह अधिकार अब भी उपलब्ध है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि दोषियों को दोषसिद्धि से पहले ही जमानत मिल चुकी थी और जब उन्हें दोषी ठहराया गया तो उन्हें दो साल की सजा दी गई। फिर यह सवाल उठा कि ट्रायल कोर्ट ने बीएनएसएस की धारा 430(3) का प्रयोग क्यों नहीं किया।