Saturday, October 11, 2025
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गैरकानूनी गिरफ्तारी का मामला: हाईकोर्ट ने होशियारपुर के एसएसपी के खिलाफ जारी किया जमानती वारंट


कोर्ट के आदेश की अवहेलना पर जताई सख्त नाराज़गी, डीजीपी और आईजी को दिए सख्त निर्देश

चंडीगढ़।
पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने एक महिला की कथित गैरकानूनी गिरफ्तारी के मामले में सख्त रुख अपनाते हुए होशियारपुर के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) के खिलाफ जमानती वारंट जारी कर दिए हैं। अदालत ने यह कदम कोर्ट के आदेशों की स्पष्ट अवहेलना के चलते उठाया, जब न तो संबंधित महिला को अदालत में पेश किया गया और न ही कोई वरिष्ठ पुलिस अधिकारी उपस्थित हुआ।

यह मामला न्यायमूर्ति सुमित गोयल की एकल पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए प्रस्तुत हुआ। उन्होंने नाराज़गी जताते हुए कहा कि मामले को सुबह दो बार बुलाया गया, लेकिन इसके बावजूद न तो पीड़िता को पेश किया गया और न ही एसएसपी या कोई सक्षम अधिकारी अदालत में हाज़िर हुआ।

जस्टिस गोयल की तीखी टिप्पणी:
अदालत ने कहा कि यह मामला बंदी प्रत्यक्षीकरण (Habeas Corpus) याचिका से जुड़ा है, जो कि किसी व्यक्ति की गैरकानूनी हिरासत या गिरफ्तारी के खिलाफ दाखिल की जाती है। उन्होंने स्पष्ट किया कि यह याचिका नागरिक की व्यक्तिगत स्वतंत्रता से जुड़ी सबसे महत्वपूर्ण संवैधानिक सुरक्षा है और इसके तहत दिए गए आदेशों का पालन पूरी निष्ठा और गंभीरता से होना अनिवार्य है।

कोर्ट ने मानी अवमानना:
न्यायमूर्ति गोयल ने कहा कि अदालत के आदेशों की इस तरह की अनदेखी न्यायालय की अवमानना के समान है। उन्होंने एसएसपी को कारण बताओ नोटिस जारी करते हुए पूछा कि उनके खिलाफ अदालत की अवमानना की कार्रवाई क्यों न शुरू की जाए।

वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को निर्देश:

आईजी रेंज को आदेश दिया गया है कि वे एसएसपी के खिलाफ जारी जमानती वारंट की तुरंत तामील सुनिश्चित करें।

पंजाब के डीजीपी को निर्देश दिया गया है कि अगली सुनवाई पर पीड़ित महिला को हर हाल में कोर्ट में प्रस्तुत किया जाए।

यदि महिला को पेश नहीं किया गया, तो डीजीपी को स्वयं अदालत में पेश होकर इसका कारण बताना होगा।

न्यायालय का सख्त संदेश:
इस आदेश के माध्यम से हाईकोर्ट ने स्पष्ट संकेत दिया है कि कानून के शासन और नागरिक अधिकारों की अवहेलना को किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। पुलिस अधिकारियों को अदालत के आदेशों के पालन को सर्वोपरि मानना होगा, अन्यथा उनके खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई तय है।


यह मामला उन सभी संवैधानिक अधिकारों की पुनः पुष्टि करता है जो नागरिकों की स्वतंत्रता और न्याय सुनिश्चित करने के लिए स्थापित किए गए हैं।

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