
पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने भारतीय सेना की अत्याधुनिक उभयचर बख्तरबंद वाहन परियोजना से जुड़ी संवेदनशील जानकारी की चोरी के आरोपी मनीष त्यागी की अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी है। न्यायमूर्ति मंजीरी नेहरू कौल की एकल पीठ ने स्पष्ट किया कि यह मामला केवल डेटा चोरी का नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा और संप्रभुता को सीधा खतरा पहुंचाने वाला गंभीर अपराध है।
कोर्ट ने कहा कि यदि यह तकनीकी जानकारी शत्रु पक्षों के हाथ लगती है, तो इससे भारत की रक्षा तैयारियों को गहरा आघात पहुंच सकता है। इससे न केवल बख्तरबंद वाहनों की सामरिक उपयोगिता पर असर पड़ेगा, बल्कि उनके संचालन की सीमाएं और कमजोरियां भी दुश्मन को ज्ञात हो सकती हैं, जिससे सैनिकों की सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है।
प्रकरण से जुड़ी कंपनी प्रामिनेंट कामटेक प्राइवेट लिमिटेड का दावा है कि उसने भारत में पहली बार पूरी तरह से युद्ध-उपयोगी उभयचर बख्तरबंद वाहन का प्रोटोटाइप तैयार किया है। यह विश्व स्तर पर केवल तीसरी ऐसी कंपनी है, जो इस उन्नत तकनीक में दक्षता रखती है, अन्य दो कंपनियां स्वीडन और सिंगापुर में स्थित हैं।
एफआईआर के अनुसार, आरोपी मनीष त्यागी, जो कंपनी में जनरल मैनेजर के पद पर कार्यरत थे, ने एक सुरक्षित अलमारी से गोपनीय दस्तावेज और डेटा स्टोरेज डिवाइस चुराई। इस डिवाइस में डिजाइन, तकनीकी योजनाएं और परियोजना से जुड़े महत्वपूर्ण डेटा संग्रहीत थे।
जांच में यह भी सामने आया कि त्यागी को परियोजना से जुड़ी आंतरिक जानकारियों और संसाधनों तक पूर्ण पहुंच प्राप्त थी, जिसका उन्होंने दुरुपयोग किया और संवेदनशील जानकारी को कथित रूप से शत्रु पक्ष तक पहुंचाने की कोशिश की।
कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में किसी भी प्रकार की उदारता दिखाना संभव नहीं है क्योंकि यह न केवल तकनीकी चोरी है, बल्कि देश की रक्षा प्रणाली और जवानों के जीवन के साथ प्रत्यक्ष खिलवाड़ है। न्यायालय ने टिप्पणी की, “सैनिकों की सुरक्षा से कोई समझौता नहीं किया जा सकता।”