Friday, June 27, 2025
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सिर्फ यह कह देना कि माल ‘ओनररिस्क’ पर बुक किया गया था, रेलवे को उसकी जिम्मेदारी से मुक्त नहीं कर सकता

– रेल यात्रा के दौरान लोहे की खेप में चोरी पर हाई कोर्ट सख्त, रेलवे को  मुआवजा देने का आदेश 

– 34 साल पुराने मामले में स्टील अथारिटी आफ इंडिया लिमिटेड और इंडियन आयरन एंड स्टील कंपनी लिमिटेड की अपील स्वीकार करते हुए हाई कोर्ट ने दिया फैसला 

 पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने रेल परिवहन के दौरान लोहा चोरी होने की घटनाओं पर रेलवे विभाग की जिम्मेदारी तय करते हुए स्पष्ट कर दिया है कि यदि माल चुराया गया है और उसमें रेलवे की लापरवाही झलकती है, तो विभाग मुआवजे से बच नहीं सकता। कोर्ट ने यह भी कहा कि सिर्फ यह कह देना कि माल ‘ओनररिस्क’ पर बुक किया गया था, रेलवे को उसकी जिम्मेदारी से मुक्त नहीं कर सकता।

यह निर्णय जस्टिस पंकज जैन ने उस याचिका पर सुनाया जो स्टील अथारिटी आफ इंडिया लिमिटेड और इंडियन आयरन एंड स्टील कंपनी लिमिटेड द्वारा रेलवे क्लेम ट्रिब्यूनल के पुराने फैसले के खिलाफ दायर की गई थी। यह मामला लगभग 34 साल पुराना है और इसकी शुरुआत 1990 के दशक के आरंभ में हुई थी।

क्या था मामला?

स्टील कंपनियों ने विशाखापत्तनम से पंजाब के जालंधर जिले के गोराया तक पिग आयरन (कच्चा लोहा) भेजा था। सामान्यत यह यात्रा छह से आठ दिनों में पूरी होनी चाहिए थी, लेकिन रेल डिब्बे एक महीने तक रास्ते में ही फंसे रहे। जब खेप गंतव्य पर पहुंची तो उसमें भारी कमी पाई गई। कंपनियों को शक हुआ कि रास्ते में माल की चोरी हुई है।

इस संदेह के चलते कंपनियों ने रेलवे से खेप का फिर से वजन करने की मांग की, जो रेलवे एक्ट की धारा 79 के तहत उनका वैधानिक अधिकार है। परंतु रेलवे ने यह अनुरोध बार-बार ठुकरा दिया। इसके बाद कंपनियों ने एक स्वतंत्र सर्वेयर नियुक्त किया, जिसने पुष्टि की कि खेप में भारी मात्रा में कमी थी।

फिर भी रेलवे क्लेम ट्रिब्यूनल ने तकनीकी आधारों पर इन दावों को खारिज कर दिया। ट्रिब्यूनल ने कहा कि कंपनियों ने न तो वैध प्रतिनिधि के माध्यम से याचिका दायर की, न ही रेलवे को धारा 106 के अंतर्गत विधिवत नोटिस दिया गया।

हाई कोर्ट ने इन सभी तकनीकी आपत्तियों को सिरे से खारिज कर दिया। जस्टिस पंकज जैन ने कहा कि याचिका एक अधिकृत अधिकारी यानी कंपनियों के रीजनल मैनेजर (लीगल) द्वारा बोर्ड के विधिवत प्रस्ताव के आधार पर दायर की गई थी। साथ ही कोर्ट ने माना कि रेलवे को विधिवत नोटिस दिया गया था, और इसके समर्थन में शपथ-पत्र भी प्रस्तुत किया गया था। रेलवे की ओर से इसे गलत साबित करने के लिए कोई सबूत नहीं दिया गया।

कोर्ट ने यह भी कहा कि ट्रिब्यूनल ने जिस तरह इन दावों को तकनीकी आधार पर खारिज किया, वह अनुचित और न्यायिक दृष्टि से त्रुटिपूर्ण था। न्यायालय ने रेलवे एक्ट की धाराएं 79, 93 और 94 का हवाला देते हुए कहा कि एक बार जब रेलवे किसी खेप को अपने नियंत्रण में ले लेता है, चाहे वह निजी साइडिंग से लोड की गई हो, तब उसके नुकसान की जिम्मेदारी रेलवे की ही होती है।

सबसे महत्वपूर्ण बात यह मानी गई कि रेलवे द्वारा फिर से वजन करने से मना करना, जो एक वैधानिक अधिकार है, एक गंभीर चूक है। इससे रेलवे की ओर से लापरवाही साबित होती है और इस आधार पर रेलवे को मुआवजा देना ही होगा।

 कोर्ट ने दोनों याचिकाकर्ता कंपनियों को पूरे नुकसान की भरपाई के साथ सात % वार्षिक ब्याज की दर से मुआवजा देने का आदेश दिया, जो याचिका दायर करने की तिथि से लेकर वास्तविक भुगतान तक लागू रहेगा।  

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