– जूनियर इंजीनियर (सिविल) परीक्षा की उत्तर कुंजी में दिए गए एक उत्तर को चुनौती देने वाली याचिका खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा , प्रतियोगी परीक्षाओं की विश्वसनीयता से समझौता नहीं होने देंगे

पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने प्रतियोगी परीक्षाओं की उत्तर कुंजी या मूल्यांकन प्रणाली को चुनौती देने वाली अनुचित और निराधार याचिकाओं के विरुद्ध कड़ा संदेश दिया है। अदालत ने स्पष्ट किया है कि विशेषज्ञ समिति द्वारा तय उत्तरों को व्यक्तिगत व्याख्या के आधार पर चुनौती देना न केवल न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग है, बल्कि यह न्यायालय के कीमती समय और संसाधनों की भी बर्बादी है।यह टिप्पणी जस्टिस विनोद एस भारद्वाज ने पंचकूला निवासी लक्ष्य चहल की याचिका को खारिज करते हुए की। याचिका हरियाणा स्टाफ सिलेक्शन कमीशन द्वारा जूनियर इंजीनियर (सिविल) परीक्षा की उत्तर कुंजी में दिए गए एक उत्तर को चुनौती दी गई थी।
याची ने दावा किया था कि “हर-की-दून ग्लेशियर से निकलने वाली नदी” का सही उत्तर “यमुना” है न कि “सरस्वती” जैसा कि उत्तर कुंजी में दर्शाया गया है। इसके समर्थन में उन्होंने हरियाणा सरस्वती हैरिटेज डेवलपमेंट बोर्ड से सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत प्राप्त दस्तावेजों और कुछ शोध-पत्रों का हवाला दिया।हालांकि अदालत ने पाया कि याचिकाकर्ता ने इन दस्तावेजों को गलत तरीके से उद्धृत किया और केवल अपने दृष्टिकोण को ही सही ठहराने का प्रयास किया, जो कि विशेषज्ञों की सामूहिक राय को दरकिनार करने जैसा है। न्यायालय ने कहा कि ऐसी प्रवृत्तियां न केवल विशेषज्ञ निर्धारण की प्रक्रिया को अविश्वसनीय बनाती हैं, बल्कि यह अकादमिक अनुशासन और सावधानी की कमी को भी दर्शाती हैं।
अदालत ने सख्त शब्दों में कहा कि इस प्रकार की याचिकाएं, जिनमें वैधानिक या संवैधानिक आधार नहीं होता, केवल असफल अभ्यर्थियों को भी इसी राह पर चलने के लिए प्रेरित करती हैं।जस्टिस भारद्वाज ने कहा कि यदि भविष्य में भी ऐसी मनगढ़ंत और अविवेचित याचिकाएं न्यायालय के समक्ष लाई गईं तो उन्हें गंभीरता से लिया जाएगा और याचिकाकर्ताओं पर जुर्मना लगाने जैसे दंडात्मक कदम भी उठाए जाएंगे।कोर्ट ने स्पष्ट किया कि प्रतियोगी परीक्षाएं अत्यधिक प्रतिस्पर्धी होती हैं, जिनमें एक अंक का भी भारी महत्व हो सकता है। ऐसे में हर अभ्यर्थी को उत्तर कुंजी में त्रुटि का दावा करने की अनुमति देना न केवल चयन प्रक्रिया की अंतिमता को कमजोर करेगा, बल्कि यह “याचिकाओं की बाढ़” को जन्म देगा।
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि वह स्वयं को विशेषज्ञ नहीं मान रही, परंतु दोनों पक्षों द्वारा प्रस्तुत दो विशेषज्ञ मतों के आधार पर यह मूल्यांकन कर रही है कि कौन-सा मत अधिक संतोषजनक है।जस्टिस भारद्वाज ने आयोग की भूमिका की सराहना करते हुए कहा कि आयोग ने अपने वैधानिक कर्तव्यों के तहत विषय विशेषज्ञों की समिति का गठन कर उत्तर कुंजी तैयार की थी। कोर्ट ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी कि इसमें किसी भी प्रकार की अनियमितता, प्रक्रियात्मक त्रुटि या नियमों का उल्लंघन सामने नहीं आया है और केवल व्यक्तिगत व्याख्या के आधार पर चयन प्रक्रिया को चुनौती नहीं दी जा सकती।