सामुदायिक विवादों में मध्यस्थता को लेकर हाईकोर्ट की बड़ी पहल
चंडीगढ़, 1 जुलाई –
पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने सामाजिक विवादों के समाधान के लिए मध्यस्थता अधिनियम, 2023 के तहत सामुदायिक मध्यस्थता को लेकर स्वत: संज्ञान लिया है। कोर्ट ने इस विषय को जनहित याचिका के रूप में स्वीकार करते हुए केंद्र सरकार, पंजाब, हरियाणा और चंडीगढ़ प्रशासन को पांच अगस्त तक जवाब दाखिल करने का आदेश दिया है।
मुख्य न्यायाधीश शील नागू और न्यायमूर्ति सुमित गोयल की खंडपीठ ने माना कि ग्रामीण क्षेत्रों में पारंपरिक रूप से खाप पंचायतें सामाजिक विवादों को सुलझाने में अहम भूमिका निभाती रही हैं, और यदि इन्हें कानूनी मध्यस्थता की प्रक्रिया से जोड़ा जाए तो यह संवाद, शांति और सामंजस्य को बढ़ावा देने में कारगर साबित हो सकता है।
मध्यस्थता अधिनियम का अध्याय 10 और सामाजिक दृष्टि:
मुख्य न्यायाधीश द्वारा जारी प्रशासनिक नोट में मध्यस्थता अधिनियम, 2023 के अध्याय 10 की धारा 43 और 44 का उल्लेख किया गया है, जिनमें सामुदायिक मध्यस्थता के लिए स्पष्ट प्रावधान हैं। इनका उद्देश्य पड़ोसियों, परिवारों और समुदायों के बीच मतभेदों को शांतिपूर्ण, सहज और कम खर्चीले तरीके से सुलझाना है। हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि इस प्रणाली को अभी तक प्रभावी रूप से लागू न किया जाना चिंताजनक है।
न्यायपालिका पर बोझ कम करने की दिशा में कदम:
कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि यदि समय रहते आपसी झगड़े और सामाजिक टकराव सामुदायिक स्तर पर सुलझा लिए जाएं, तो इससे समाज में सौहार्द और विश्वास का वातावरण तैयार होगा और साथ ही न्यायपालिका पर बढ़ते बोझ को भी कम किया जा सकेगा। यह न्यायिक प्रणाली को अधिक सक्षम और जनसुलभ बनाने की दिशा में एक दूरदर्शी प्रयास माना जा रहा है।
राष्ट्रीय स्तर पर मॉडल बनने की संभावना:
हाईकोर्ट की इस पहल को पारंपरिक सामुदायिक व्यवस्थाओं को कानूनी ढांचे में समाहित करने और न्याय को आमजन के करीब लाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। यदि यह मॉडल सफल होता है, तो यह देशभर में लागू किए जाने योग्य एक प्रेरणादायक उदाहरण बन सकता है।