इजरायली महिला को मिली राहत, कोर्ट ने चंडीगढ़ प्रशासन को शीघ्र कार्रवाई का निर्देश दिया
चंडीगढ़।
पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में चंडीगढ़ प्रशासन को आदेश दिया है कि वह एक इजरायली महिला और भारतीय नागरिक के हिंदू रीति-रिवाजों से हुए विवाह की पंजीकरण प्रक्रिया को जल्द से जल्द पूरा करे। न्यायमूर्ति कुलदीप तिवारी की एकल पीठ ने यह आदेश याचिका पर सुनवाई करते हुए पारित किया, जिसमें विवाह पंजीकरण में अनावश्यक देरी और पुलिस सत्यापन के नाम पर की जा रही टालमटोल का आरोप लगाया गया था।
याचिका इजरायली नागरिक प्रिसिला डैनबर्ग लेवी और उनके भारतीय पति की ओर से दायर की गई थी। दोनों ने 10 मई 2025 को सेक्टर-52 स्थित आध्यात्मिक आर्य समाज मिशन मंदिर में हिंदू धर्म के अनुसार विवाह किया था। याचिकाकर्ताओं ने तहसीलदार-कम-विवाह रजिस्ट्रार को विवाह पंजीकृत करने के लिए कई बार आवेदन किया, लेकिन प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ी।
कोर्ट की स्पष्ट हिदायतें:
जस्टिस तिवारी ने स्पष्ट किया कि यदि याचिकाकर्ता विधिसम्मत आवेदन कर चुके हैं, तो विवाह रजिस्ट्रार पर यह कानूनी जिम्मेदारी है कि वह विवाह पंजीकरण को बिना अनावश्यक बाधा के पूर्ण करे। कोर्ट ने कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत विवाह सम्पन्न हो चुका है और पंजीकरण के लिए जरूरी दस्तावेज पहले ही दाखिल किए जा चुके हैं, ऐसे में रजिस्ट्रार को इसकी वैधता पर निर्णय करने का अधिकार नहीं है।
प्रशासन की दलील:
चंडीगढ़ प्रशासन की ओर से पेश अतिरिक्त स्थायी अधिवक्ता ने तर्क दिया कि पंजीकरण से इनकार नहीं किया गया है, बल्कि हरियाणा अनिवार्य विवाह पंजीकरण नियम, 2008 के तहत विदेशी नागरिक के मामले में पुलिस सत्यापन और दूतावास से निवास पुष्टि जरूरी है, जो अभी लंबित है।
अदालत की प्रतिक्रिया:
कोर्ट ने कहा कि प्रशासन सत्यापन प्रक्रिया जल्द पूरी करे और याचिकाकर्ताओं के आवेदन पर बिना देरी के निर्णय लिया जाए। साथ ही, यह भी निर्देश दिया गया कि यदि सत्यापन रिपोर्ट आने के बाद भी अधिकारी कोई कार्रवाई नहीं करते हैं, तो दंपति को फिर से अदालत आने की स्वतंत्रता होगी।
याचिकाकर्ता का पक्ष:
दंपति की ओर से पेश अधिवक्ता ने बताया कि प्रिसिला लेवी भारत में एक दशक से अधिक समय से रह रही हैं और उन्होंने स्वेच्छा से हिंदू धर्म अपनाया है। इस प्रकार उनका विवाह पूरी तरह से हिंदू विवाह अधिनियम के प्रावधानों के अनुरूप है।
न्यायिक संदेश:
इस फैसले से स्पष्ट संकेत मिलता है कि धार्मिक रूप से विधिसम्मत विवाहों को केवल प्रशासनिक प्रक्रियाओं की आड़ में रोका नहीं जा सकता, विशेषकर तब जब विदेशी नागरिक भारतीय संस्कृति और धर्म को पूरी तरह आत्मसात कर चुका हो।
यह निर्णय उन सभी अंतरराष्ट्रीय दंपतियों के लिए राहत की उम्मीद है, जो भारतीय कानूनों के तहत विवाह पंजीकरण को लेकर अनावश्यक अड़चनों का सामना कर रहे हैं।