
– कोर्ट ने अधिकारियों की समझ को “निम्न स्तर की” करार देते हुए कहा कि वे यदि राज्य की सर्वोच्च कार्यकारी संस्था के प्रतिनिधि हैं, तो यह स्थिति चिंताजनक है- यह कार्यपालिका के उच्चतम स्तर की अज्ञानता को या उससे भी खराब, उसकी ईमानदारी को दर्शाता : हाई कोर्ट
हरियाणा सिविल सेवा (कार्यकारी शाखा) में चयन प्रक्रिया को लेकर पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने राज्य सरकार के सचिव स्तर के अधिकारियों की कार्यप्रणाली पर तीखी टिप्पणी की है। जस्टिस विनोद एस भारद्वाज ने अधिकारियों की समझ को निम्न स्तर की करार देते हुए कहा कि वे यदि राज्य की सर्वोच्च कार्यकारी संस्था के प्रतिनिधि हैं, तो यह स्थिति चिंताजनक है। अदालत ने हरियाणा सरकार द्वारा एक अधिकारी रितु लाठर की एचसीएस के लिए उम्मीदवारी को नकारने के निर्णय को न केवल मनमाना, बल्कि दुर्भावनापूर्ण करार देते हुए खारिज कर दिया। रितु लाठर की ओर से दायर याचिका में कहा गया था कि 2019 में जब विकास एवं पंचायत विभाग को योग्य अधिकारियों की सूची हरियाणा लोक सेवा आयोग (एचपीएससी) को भेजनी थी, तब विभाग ने विजिलेंस जांच का हवाला देते हुए उनका नाम शामिल नहीं किया। वहीं, दो अन्य अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज होने के बावजूद उनका नाम भेजा गया और वे चयनित होकर एचसीएस अधिकारी नियुक्त भी हो गए।कोर्ट ने हरियाणा सिविल सेवा नियमों के नियम 14 की व्याख्या करते हुए कहा कि केवल ऐसे उम्मीदवारों को विचार योग्य माना जाना है जो विजिलेंस की दृष्टि से साफ हों। सरकार ने इसका तात्पर्य यह लिया कि जिसके खिलाफ एफआईआर दर्ज है, वह अयोग्य है। कोर्ट ने इस व्याख्या को पूरी तरह गलत ठहराया। जस्टिस भारद्वाज ने स्पष्ट किया कि न तो नियम में एफआईआर का उल्लेख है, और न ही उसकी परिणति का। उन्होंने कहा कि एफआईआर दर्ज होने के बावजूद यदि व्यक्ति को विजिलेंस जांच में निर्दोष घोषित किया गया है, तो वह चयन के लिए उपयुक्त माना जाना चाहिए।रितु लाठर के मामले में अदालत के समक्ष रखे गए दस्तावेजों से यह प्रमाणित हुआ कि उनके खिलाफ दर्ज एफआईआर में वह कभी भी आरोपी के रूप में साबित नहीं हुईं। 2016 में डीएसपी स्तर की जांच में उन्हें क्लीन चिट दी गई थी और 2019 में हरियाणा विजिलेंस ब्यूरो के महानिदेशक ने मुख्य सचिव को पत्र लिखकर यह पुष्टि की थी कि लाठर निर्दोष हैं। यह पत्र एचसीएस चयन के लिए नाम भेजने से पहले का था, फिर भी उनका नाम जानबूझकर रोका गया।कोर्ट ने हैरानी जताई कि सरकार ने अन्य दो ऐसे अधिकारियों को चयन योग्य मानना जिन पर एफआईआर तो दर्ज है, मगर कोई विजिलेंस जांच नहीं हुई, जबकि रितु लाठर को, जिन्हें विजिलेंस से क्लीन चिट मिल चुकी है, अयोग्य ठहराना यह तर्क दुर्भावनापूर्ण और पूरी तरह अनुचित है। हाई कोर्ट ने रितु लाठर की याचिका को स्वीकार करते हुए राज्य सरकार के निर्णय को रद्द कर दिया और इस पूरी प्रक्रिया को प्रशासनिक निष्पक्षता और न्यायिक समझ के विरुद्ध बताया। यह याचिका 2019 में दायर हुई थी। प्रदेश सरकार की तरफ से जुलाई, 2019 में रजिस्टर ए (डीडीपीओ, बीडीपीओ में से योग्यताएं पूरी करने वाले अफसरों के नाम एचपीएससी को भेजे जाने थे। जिसमें रितू लाठर का नाम नहीं भेजा गया था जिसे लाठर ने हाई कोर्ट में चुनौती दी थी।